Sunday 17 February 2019

पर्वतों के महायुद्ध से बदलता भूगोल!


क्या पर्वत भी कभी देवता थे या फिर देवताओं की सवारी थे? ज्वालामुखी के रूप में आग उगलते पर्वतों को मनुष्य ने युद्धरत देवताओं के रूप में भी देखा है...
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न्यूजीलैंड के माओरी आदिवासी मानते हैं कि पहाड़ भी कभी देवी-देवता हुआ करते थे और अकल्पनीय शक्ति से संपन्ना थे। देश के उत्तरी द्वीप पर स्थित सात पहाड़ों का माओरी समाज में विशेष महत्व है। उनके अनुसार, इन सात में से छह पहाड़ देवता थे, जबकि पिहंगा पहाड़ देवी। सभी छह देवता पिहंगा पर मोहित थे और एक दिन तय हुआ कि वे आपस में युद्ध कर तय करेंगे कि पिहंगा किसकी होगी। पहाड़ों के बीच यह युद्ध कई दिनों तक चला, जिसमें वे एक-दूसरे पर आग उगलते रहे। जलती चट्टानें आसमान में इधर से उधर उड़ती रहीं। इस महायुद्ध से धरती कांप उठी। अंतत: टोंगारिरो पर्वत विजेता रहा और अनंतकाल तक पिहंगा के बगल में उपस्थित होने का अधिकारी बना। शेष पराजित पर्वतों से कहा गया कि वे रात भर में जितना दूर जा सकें, चले जाएं। दो पर्वत दक्षिण की ओर चले गए और दो पूर्व की ओर। वहीं तारानाकी पर्वत अपनी पराजय से सबसे ज्यादा दुखी था क्योंकि वही सबसे ज्यादा शिद्दत से पिहंगा को चाहता था। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि तारानाकी और पिहंगा पति-पत्नी थे और टोंगारिरो ने पिहंगा को छीन लिया था। दुख, क्रोध व ग्लानि से कसमसाता तारानाकी जमीन में गहरी खाई बनाता हुआ दूर चला गया और समुद्र के किनारे जा खड़ा हुआ। पिहंगा के लिए बहाए गए उसके आंसू इस खाई में भर गए और नदी के रूप में बह निकले।
ज्वालामुखियों के विस्फोट, भूकंप और नित बदलते भूगोल को देखने व उसका वर्णन करने का यह बड़ा ही दिलचस्प तरीका है। हालांकि पहाड़ों को देवी-देवता का दर्जा देने का यह इकलौता उदाहरण नहीं है। अनेक देशों-समाजों में पहाड़ पूजनीय रहे हैं। या तो इन्हें सीधे-सीधे ईश्वरीय अवतार माना गया या फिर इनके विराट आकार के आदर स्वरूप मनुष्य इनके आगे नतमस्तक हुआ। पर्वतों के शिखरों का विशेष महत्व था। शायद इसलिए कि आकाश छूते ये शिखर स्वर्ग के निकट माने जाते थे। ऊंचाइयों और दिव्यता का वैसे भी एक परस्पर संबंध मानव अवचेतन में रचा-बसा रहा है। इसलिए भी अपनी ऊंचाई के चलते पर्वत दिव्य आभामंडल से मंडित रहे हैं। अनेक पर्वत ईश्वर या देवताओं के वास के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। फिर वह यूनानी सभ्यता का ओलिंपस पर्वत हो या फिर भारतीय-तिब्बती सभ्यता में पवित्रतम माना गया कैलाश पर्वत। मेरू, सिनाई, फुजी, किलिमंजारो आदि अनेक वास्तविक व मिथकीय पर्वतों के उल्लेख से विश्व भर के प्राचीन आख्यान भरे पड़े हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत स्थित शास्ता पर्वत का स्थानीय आदिवासियों के बीच विशेष धार्मिक महत्व है। इससे जुड़ी कथा भी माओरियों की कथा की भांति प्रेम, इनकार और युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है। बताते हैं कि पाताल लोक के देवता लाओ को क्लामथ कबीले की राजकुमारी से प्रेम हो गया और उन्होंने कबीले के मुखिया से उसका हाथ मांग लिया। मगर लाओ के वीभत्स रंग-रूप के देखकर राजकुमारी ने उनसे विवाह करने से इनकार कर दिया। तब लाओ ने पूरे कबीले को सबक सिखाने का प्रण लिया। भयभीत क्लामथ कबीले ने स्वर्गलोक के देवता स्कैल का आह्वान किया कि वे आकर उनकी रक्षा करें। अब स्कैल शास्ता पर्वत पर सवार हुए और लाओ पास ही स्थित मजामा पर्वत पर। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। दोनों पर्वतों के बीच गगनभेदी गर्जना के साथ आग के भयावह गोले दागे गए। ऐसा युद्ध हुआ कि धरती कांप गई। आखिरकार स्कैल ने लाओ को परास्त किया और कबीले की रक्षा की। तभी से वह शास्ता पर्वत भी पवित्र हो गया, जिस पर सवार होकर उन्होंने यह विजय प्राप्त की थी।

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